कविता

आया बंसत

खुशियों का प्यारा संदेशा ले,
बन ठन इठलाता आया बंसत ।

शीत लहर के दिन अब गए,
धरती पर जीव खुश हो गए,
रवि ने दिव्य रश्मियां बिखेरी,
पवन ने मधुरम सरगम छेडी़,
दिशाओं में बह रहा मकरंद,
बन ठन इठलाता आया बंसत ।

गाएं लहराती गेहूं की बालियां,
तितलियां करे हैं अठखेलियां,
कण-कण धरा का सुंदर खिला,
सौंदर्य मनोरम फिजा में घुला,
भरने हर मन मंदिर में “आनंद”,
बन ठन इठलता आया बसंत ।

गीत नया मीठा कोयल ने गाया,
भंवरों ने संग संग शोर मचाया,
नन्ही कोमल कलियां मुस्काई,
प्रकृति में रमणीय रौनक छाई,
स्वागत सत्कार हुआ यूं बुलंद,
बन ठन इठलाता आया बसंत ।

खुशियों का प्यारा संदेशा ले,
बन ठन इठलाता आया बंसत ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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