ऊँचाई
अपार्टमेंट के लिफ्ट में अक्सर चढ़ते-उतरते सविता और मोहिनी में परिचय हुआ और धीरे-धीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। ग्राउंड फ्लोर पर लिफ़्ट से निकलते हुए सविता ने मोहिनी से कहा,”आप से मिलकर अच्छा लगा। आप दूसरी मंजिल में रहती हैं?”
“मुझे भी। जी हाँ मैं दूसरी मंजिल में रहती हूँ। आप ऊपरी मंजिल में रहती हैं?”
“हाँ सविता जी! मैं इस बिल्डिंग की सबसे ऊपरी दसवीं मंजिल में रहती हूँ। क्या करूँ? मुझे खुले आसमान के नीचे रहना पसन्द है”, मोहिनी ने उत्तर दिया।
“यह आपका अपना फ्लैट है?”
“हाँ जी, हमारा है। इस फ्लैट के लिए हमने बहुत इन्तजार किया क्योंकि हमें ऊपरवाला फ्लैट ही चाहिए था। नीचे वाले फ्लैट मिल रहे थे और उनके दाम भी कम थे”, मोहिनी ने बताया।
“तब तो आपको अधिक मूल्य देना पड़ा होगा। मुम्बई में मंजिल जितनी ऊपर होती है, उतना दाम बढ़ता जाता है और सबसे नीचे की मंजिल सबसे कम होता है।”
“सविता जी! हमने अपने फ्लैट के लिये लाखों रूपये अधिक दिये हैं।” मोहिनी की बात सुनकर सविता ने कहा,
“हमारे लिये दूसरी मंजिल अच्छी है। अगर लिफ्ट खराब हो जाये तो सीढ़ियों का प्रयोग कर सकते हैं।”
“आपने सही कहा पर ऐसा कभी-कभी ही होता है। ऊपरी मंजिल में रहना स्टेटस सिम्बल है। कभी आइये हमारे घर”, गर्व मिश्रित स्वर में मोहिनी ने कहा।
“धन्यवाद आपका! मुझे आमंत्रित करने के लिए। एक बात कहूँ बुरा मत मानियेगा। मैं विचारों की विशालता को सबसे ऊँचा मानती हूँ”, सविता ने उत्तर दिया।
— डाॅ अनीता पंडा ‘अन्वी’