कविता

एलिमनी के बिना तो तलाक भी नहीं होता

वसंत

कई दिनों के वियोग

यात्रा की थकान

हो गया था सर्द

बेरोजगारी के दर्द

को समेटे हुए

घर वापस

उषा के पास पहुँचा।

उषा ने देखते ही

मुँह मोड़ लिया,

मुझे नहीं देखना

तुम्हारा पिटा हुआ चेहरा,

मैंने पहले ही कह दिया था

मेरे पास वापस

तभी आना

जब कमाकर कुछ बन जाओ

एसी, लेपटाॅप और आई फोन

खरीदने को धन जुटा पाओ।

बेरोजगारी का रोना रोने वाला

प्यार क्या जाने?

प्यार के लिए तो पैसा चाहिए

यदि नहीं थी ताकत

कमाकर घुमाने की

तो क्या थी जरूरत

घोड़ी चढ़ आने की।

एलिमनी के बिना तो

तलाक भी नहीं होता।

अगर तुझे

अपनी जान प्यारी है,

तू बाहर निकल

उड़ाता रह तोता।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

Leave a Reply