गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

क्यों ये आदत खराब करते हो
दर्द को बेनकाब करते हो
प्यार पहले कहां था जीवन में
अब तो तुम बेहिसाब करते हो
एक जुगनू सी जिंदगी थी मेरी
आ के तुम आफताब करते हो
क्यों न बंध जाते रस्मएउल्फ़त में
ऐसी बातें जनाब करते हो
बिखरी बिखरी सी मेरी बातों को
गूंथ कर क्यों किताब करते हो

— ओम निश्चल

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