कविता

चलो सखि मिल कुंभ नहाएं

प्रयाग राज में कुंभ लगी है
भग्तो की तो धूम मची है
अपना जीवन धन्य हो जाता
चलो सखि मिल कुंभ नहाएं।
गंगा यमुना सरस्वती है
संगम तट पर घाट बना है
लगावो डुबकी कुछ पुण्य कमाओ
चलो सखि मिल कुंभ नहाएं।
साधु संतों का लगा है मेला
कल्प वासी का बना है डेरा
माघ महीना अनुपम बेला
चलो सखि मिल कुंभ नहाएं।
कहीं हो रहा है कीर्तन
कहीं संतों की अमृत वाणी
सारे कष्ट मिटेंगे पल में
चलो सखि मिल कुंभ नहाएं।

— विजया लक्ष्मी

विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।

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