कविता

दिल्ली राज्य चुनाव

चुनाव प्रचार तो, चलो थम गया
अब थोड़ी शांति, भी आएगी
पर कड़वाहट जो,इतनी फैल गयी
क्या वह कुछ, कम हो पाएगी

सम्बन्ध, जो पल में, तार-तार हुए
हो सकता है, फिर जुड़, भी जाएं
एक टीस तो,फिर भी रहेगी जरूर
क्या वह मिठास, फिर आ पाएगी

कुछ दिन बाद, दिल्ली चुनाव का
परिणाम जब, सामने आएगा
आरोप – प्रत्यारोप , का शोर भी
थोड़ा मंद, पड़ जाएगा

तब आएगी, इम्तिहान की घड़ी
बड़े -बड़े वादे, पूरा करने की
मुश्किल में होंगे, राजनैतिक दल
इंसान खुद को, ठगा हुआ पाएगा

ऐसे कौन से,धन स्वामी, कुबेर के
भंडारे, सरकार के, भरे पड़े हैं
हमारे,आपके कर, का ही पैसा है
जिसको, लुटाने पर , वे अड़े हैं

एक दिन जब, यह रिश्वतखोरी
निठल्ले पन में, बदल जाएगी
शायद जब, जागेंगी, सरकारें
तब तक, बहुत देर, हो जाएगी।।

बेशर्मी, मौकापरस्ती, का लबादा
जो बेझिझक,सबने ओढ़, रखा है
चुनाव आयोग ने, जानबूझ कर
सबको, खुद खुला, छोड़ रखा है

एक दिन, लोकतंत्र के , लिए यही
जब ,खतरे की घंटी, बन जाएगा
क्या तब, जागेंगी हमारी, सरकारें
जब सारा खजाना, लुट जाएगा।।

सरकार बनाने की, गहमागहमी में
सब मर्यादाएं, क्यों, भूल रहे हो
देश को, यह सब, भारी पड़ेगा
क्यों गफलत के, झूले झूल रहे हो

जानकर क्यों, अनजान, बने हो
एक दिन आपको, यह ले डूबेगा
कब तक मुफ्त की, रेवड़ी बांटकर
कोई किसी को, खुश कर सकेगा

अति निर्धन,वर्ग को, यदि दें राहत
तो फिर भी, समझ में, आता है
पर सभी को, मुफ्त में, बांट जाना
कुछ, गले न, उतर पाता है

दीर्घकाल तक, यही क्रम, यदि
सभी, राजनैतिक दल, अपनाएंगे
तो इसमें, किंचित भी, संदेह नही
लोकतंत्र को, हाशिए,पर पाएंगे।।

तो इसमें, किंचित भी, संदेह नही
लोकतंत्र को, हाशिए,पर पाएंगे।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

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