बसंत आ गई
ठंड गई, बसंत आ गई,
पीले सरसों, बहार छा गई!
देवर कहता, भौजाई से,
भाभी आओ, फागुन आया!
कैसे आऊं, भाभी कहती,
रंग बसंती, कैसे लगाऊं!
देवर कहता, ओ मेरी भाभी,
तू तो है, मेरी माई जैसी!
अबकी भैया, से कह दूंगा,
फागुन में तुम्हें, आना ही होगा,
राह तके है, मेरी भाभी माई,
हद हो गई, बहुत हो गई कमाई!
गांव, पड़ोसी, ताना देते हैं,
तेरे बिना घर – द्वार, नहीं भाते हैं!
भाभी दिन भर, उदास रहती हैं,
रंग बसंती में, आंसू गिरते हैं!
चना पकेगा, आम बौराने हैं,
भंवरा भी बौराने हैं, नई कोंपलें आई हैं,
भैया तुम नहीं, आए हो,
विरहिन बन गई, मेरी भाभी है!
नहीं कमाई, हमें चाहिए,
भाभी की मुस्कान, भैया तुम ला दो!
फाग गीत में, रस भर जाएगा,
भाभी तन – मन, खिल जाएगा!
घर में सचमुच, बसंत आएगा,
भाभी का रंग, मुझे लगेगा!
तन मन मेरा, खिल जाएगा,
भाभी का सिंदूर, चमकेगा!
घर में खुशियां, लौट आएंगी,
भाभी गुझिया, मुझे खिलाएंगी!
होली का त्योहार, भैया के संग आएगा,
घर में खुशियां लाएगा,
भाभी का मन रंग जाएगा!!
— डॉ. सतीश “बब्बा”