बसंत
बसंत की बहार है
पीली पीली सरसों निखरी है
खिला खिला चमन है
लेखक मन ने उठाई है कलम
प्रथम
माँ सरस्वती के चरणों में
शत शत नमन ,
सत्य लेखन में ही सरस्वती पूजा है-
लेखनी तो सरस्वती है, इसका अपमान न करें,
सत्य लिखें सौम्य लिखे, अश्लीलता से दूर रहें,
सच चाहे कड़वा भी हो, सब को स्वीकार हो
झूठ चाहे मधुर हो, विष की तरह धिक्कार हो,
जो लिखा है आज, वो सदियों न मिट पायेगा,
जैसा लेखन पढ़ेगा , समाज वैसा ही बन जायेगा,
कलम की ताक़त जहाँ में ,तलवार से भी तेज़ है,
माया की खातिर झूठ लिखते , बस इसी का खेद है,
कबीर सूर तुलसी मीरा,कवि जायसी और रसखान,
सच लिखा हो समर्पित ,इसीलिए महाकवि महान,
कलम जब भी उठाओ समझो यह पूजा की थाली है,
सामने माँ सरस्वती है ,माँ झोली भरने वाली है,
अश्लील लेखन झूठी चमक, अंदर से सबकुछ खाली है,
सच्चा लेखक ही सच में,’साहित्य’ बगिया का माली है
— जय प्रकाश भाटिया