सब्जी वाला दोस्त
एक दिन काम से लौटते समय पत्नी का फोन आया, वो कुछ सब्जी लाने के लिये बोली। आगे बाजार में सब्जी की दुकान पर रुक गया, तभी दुकानदार को देखा जो मुझे जाना पहचाना जान पड़ता था. शायद वो मेरे साथ कालेज में था, याद नहीं आ रहा था कि वो मेरी तरफ देखते ही बोल पड़ा “और मित्र कैसे हो.
मैं मुस्कुराते हुये बोला” सुमित भाई सब ठीक है.
“अरे आपने मुझे पहचान लिया,
“अरे क्यों नहीं मित्र आपको कैसे भूल सकता हूं,और सुनाओ
वो मेरी तरफ गहरी सांस लेते बोला “मित्र आजतक अपनी नजरों के साथ समाज की नजरों से गिरा था, अब अपनी दोस्त की नजरों से गिर गया हूं.
मैं बोला “अरे ऐसा क्यों बोल रहे हो
वो बोला”अरे मित्र बीएड करके सब्जी बेच रहा हूं,आपको बुरा नहीं लगा..
मैं बोला “अरे इसमें क्या बुराई चार रूपये कमा रहे हो इज्जत की जिंदगी जी रहे हो.
वो बोला “मित्र इज्जत की जिंदगी कैसे जब लोग मुझे देखकर मुस्कुराते हैं, मानो ऐसे लगता कि जीते जी मौत मर रहा हूं..
मैं मुस्कुराते हुये बोला “देखो मित्र इस समाज में कोई काम छोटा नहीं होता बस करने वाले के सोच का फर्क होता हैं,यदि हंसने वाले से लोग कमजोर होते समाज से कोई उभर कर आगे नहीं जाता और आप तो स्वाभिमान की जिंदगी जी रहे हो जीवन के लिये संघर्ष कर रहे हो।
अब उस मित्र के चेहरे पर संतोष झलक रहा था, वो मुझे सब्जी दिया फिर पैसे लेने से मना करने लगा। मैं जबरदस्ती पैसे देते बोला “पहली बार दुकान पर आया हूं बोहनी खराब मत करो। वो मुस्कुराने लगा।
— अभिषेक कुमार शर्मा