कुंडलिया छंद
याचक बनना मत कभी, मंदिर प्रभुजी धाम।
परमात्मा ईश्वर लिखे, भाग्य उचित अभिराम।।
भाग्य उचित अभिराम, सत्य, संयम की धारा।
श्रम से हो आलोक, ज्ञान का हो उजियारा।
निर्मल, पावन भाव, भक्ति कीर्तन आराधक।
मंदिर में प्रभु वास, कभी मत बनना याचक।।