महंगाई
‘भाई कितनी महंगाई है। इस मंहगाई में घर को चलाना कितना मुश्किल काम है।और आज फरमिश है कि उन्हें कोई गिफ्ट चाहिए। कहां से लाकर दूंगा।* सुरेश गहराई से सोच ही रहा था. तभी रामशरण दादा ने टोकते हुए कहा, ‘क्या रे सुरेश क्या सोचता रहता है? देख तेरी चाय भी पानी हो चली है।’
‘क्या करूं दादा इस मंहगाई में पिशा जा रहा हूं। और उस पर मुसीबत ये अब उन्हें कौन सा तौफा दूं।’
‘बेटा ये तो सभी के साथ हो रहा है। कल ही बात है मैंने खुद दादी को महंगा गिफ्ट दिया था। देना पड़ा। क्या करता मुझे भी अपना कल देखना है वरना मुझे खाना तो छोड़ो पानी तक नहीं मिलता। गृहमंत्री का आदेश टालना आसान नहीं है पूरा घर वो सिर पर उठा लेते है अगर उन्हें गिफ्ट न मिले तो…’
— अभिषेक जैन