अपना दर्द
दर्द अपना सुनाएँ तो सुनायें किसको
वक़्त किसपर है इतना
जो सुनें दास्तां हमारी
हर एक तो गुजर रहा दर्दे दौर से
निज़ात पाये जो अपने दर्द से
तब तो समझें सुनें दर्द मेरा
अपने ही कांधे पर
दर्द का बोझ उठाये घूम रहा
कोई तो मिले जो रोक कर
पूछ ले दर्द मेरा
सीने में दबाये अपने दर्द को
एक दिन रुख़सत हो जाऊंगा
शायद मेरे जाने के बाद
कोई आये और जिक्र करे मेरे दर्द का