कविता

औरों के हक़ पर पलना छोड़ो

लाख विरोध कर लो,
लाखों बार जलकर राख हो जाओगे,
मगर सत्य तो सत्य रहेगा,
जिसे हर सद मनुष्य सच कहेगा,
तुम लोगों ने अस्पृश्यता का
नंगा नाच खेला था,
जिसे उसने बालपन से लेकर
ताउम्र सब कुछ झेला था,
जब तुम पाखंड की ज्योत जला रहे थे,
तब वे सारे संसार की सैद्धांतिक बातें
अपने मन मस्तिष्क में पढ़कर बसा रहे थे,
जिन्होंने बड़ी मुश्किल से
एक डिग्री हासिल किया,
उसने बत्तीस डिग्री पर सवाल उठाए,
असल सवाल कर रहा था उसकी जाति
जो दिमाग में है पहले से बैठे बिठाए,
उसने अकेले कई दिन दिमाग खपा
हर देश का संविधान खंगाला,
देश की परिस्थितियों के हिसाब से
हर जरूरी बात संविधान में दे डाला,
जिससे देश सही तरीके से चल सके,
हर नागरिक उच्छलशृंख मन से
घरों से बाहर निकल सके,
बराबरी कर नहीं सकते तो जलना छोड़ो,
पढ़ो,लिखो योग्य बनो
दूसरों के हक़ पर पलना छोड़ो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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