लेखनी तू खुलके बोल
लेखनी तू खुलके बोल हिय तराजू तौल बोल,
असंख्य प्रतिबिंब धरे तेरा जीवन है अनमोल।
प्रखर प्रताप हिय समाये कुंठाओं में जकड़ी है,
सुनती नहीं किसी की तू निर्बाध गति से बहती है,
विद्रुपताओं में उलझी तेरा जीवन है अनमोल
लेखनी तू खुलके बोल।
परखा तूने हर पहलू को उम्र तेरी हो चली है,
कोरे कागज़ को रंगती पग-पग तू खूब जली है,
समस्याओं को समाये तेरा जीवन है अनमोल
लेखनी तू खुलके बोल।
काले अक्षर श्वेत करती जग को प्रकाशित करती,
हर ध्वनि में भाव समेटे ज्ञान-गंगा गोते लगवाती,
सद्भावना की नौका थामे तेरा जीवन है अनमोल
लेखनी तू खुलके बोल।
समाज सेवा भाव जगाती राष्ट्र हित मरना सिखाती,
निस्वार्थ भाव प्रेरित कर कृतज्ञता का बोध कराती,
जय-पराजय सम लिए तेरा जीवन है अनमोल
लेखनी तू खुलके बोल।
मन-मलिनता को मिटा ऊंच-नीच का भेद मिटाती,
हर जीव में प्रभु का दर्शन पर-पीड़ा हरना सिखाती,
,स्वप्न सुनहरे धारण किये तेरा जीवन है अनमोल
लेखनी तू खुलके बोल।
— डॉ. निशा नंदिनी भारतीय