कविता

आखिरी पुकार

मेरे मुंह से निकली
इतनी साफ मधुर आवाज की पुकार
भले ही न सुनाई पड़ी हो तुम्हें
लेकिन मेरे शब्दों की ऊर्जा से
जरूर प्रभावित हुए होगे तुम
यह पुकार व्यर्थ नहीं जाएगी
इतना विश्वास है मुझे।
मेरी हर पुकार में
बसती है दुनिया
दुनिया के दुःख दर्द
एक दुनिया लोकतंत्र की।
पुकार में ही बसता है
सारी दुनिया का मर्म
कठिन से कठिन क्षण
सरल से सरल मन इसी पुकार में है।
अन्याय, अत्याचार और शोषण को दुत्कारता
बर्बरता के विरोध का स्वर
इसी पुकार में है।
सभ्यताओं के टकराव की कथा
बारूद के ढेर पर बैठी हुई इस दुनिया की
तमाम चिंताएं इसी पुकार में हैं।
पुकार जारी रहेगी तब तक
जब तक नहीं बदलेगी दुनिया
नहीं पढ़े जायेंगे पाठ
शांति अहिंसा प्रेम और सद्भावना के
बार बार पुकारूंगा तुम्हें
क्योंकि ये मेरी आखिरी पुकार नहीं है।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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