गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

होरी उमर भर कर्ज़ से कमर तोड़ लेता हैं
बनिया एक शून्य ‘औ’ बढ़ाकर जोड़ लेता हैं

गिरवी रखें हैं खेत अब कैसे छूटे उससे
जबकि सारा पसीना बनिया निचोड़ लेता हैं

जुल्म सहकर भी वो खामोशी ही ओढ़ता हैं
यही लिखा है कहकर मुकद्दर मरोड़ लेता हैं

जब ना होती भूख सहन तो उधारी वास्ते
फिर बनिये के द्वार से वो सिर फोड़ लेता हैं

गांव गांव के होरी की यही दशा है रमेश
सबक सीखकर भी वो तो नहीं मोड़ लेता हैं

— रमेश मनोहरा

रमेश मनोहरा

शीतला माता गली, जावरा (म.प्र.) जिला रतलाम, पिन - 457226 मो 9479662215

Leave a Reply