हास्य व्यंग – वैलेंटाइन के खर्चे
बसंत ऋतु ,मधुमास, ऋतुराज अनेक नामों से पुकारा जाने वाला प्रेमियों का प्रतीक्षातीत समय फरवरी माह अपने पूरे लाव लश्कर के संग पधार चुका है। दुनिया में चाहे जितना हाहाकार मचा रहे पर प्रेम के पंछी प्रेम के प्रेमगीत गाने में हमेशा मगन रहते हैं। मेरा भी मानना है कि इस दुनिया में नफरत करना बहुत आसान है प्रेम करना कठिन है तो सबसे कठिन है ।
आप खुद ही देख लीजिए नफरत करने वाले से किसी को ऐसे ही दुश्मनी नहीं होती है । जब तक की उसका हित प्रभावित न हो। लेकिन प्रेम करने वाले से हर किसी को जलन और ईष्या होती रहती है अब चाहे वह कहीं का भी रहे। तो जाहिर सी बात है हम सभी की सहानुभूतियां भी प्रेम करने वालों के साथ रहनी चाहिए। लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है । प्रेम करने वाले को सजा दुनिया से नफरत के रूप में मिलती है। लेकिन फिर भी यह प्रेम करने वाले बाज नहीं आते हैं। और अपना मांगलिक कार्यक्रम चालू रखते हैं। इस दुनिया में सबसे ज्यादा हिम्मत चाहिए तो इंसान को प्रेम करने के लिए ही चाहिए। वरना कौन किसी के लिए पूरी दुनिया से दुश्मनी मोल लेता है।
खैर छोड़िए अब आते हैं मुद्दे की बात की तरफ पहले के जमाने में तो प्रेम करने में हजार अड़चन रहती थी। पर अब स्मार्टफोन और इंटरनेट मीडिया ने सब कुछ आसान कर दिया है । चलो इन विचारों को कुछ तो रहता टेक्नोलॉजी की वजह से मिल गई। वरना प्रेम ही ऐसा काम है कि इसमें काम कुछ नहीं रहता है लेकिन एक पल को आराम भी नहीं रहता है।
आजकल तो इसके भी ट्रेंड चलते हैं। वीक चलते हैं । आजकल इन्टरनेट मीडिया का जमाना है । और आजकल हर कोई मीडिया के द्वारा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है । चाचा चाचियों के साथ भैया भाभियों के साथ और फूफा फूफियों के साथ जुड़े हुए हैं यह अलग बात है कि वह किसी अलग के चाचा है और वह किसी अलग की चाची है ।जब इतने सारे एक दूसरे के साथ तो बैचलर क्यों पीछे रहे वह भी सुमुखि कन्याओं के साथ अटैच है।
इधर दिल में ख्याल आया उधर ख्याल पहुंचा दिया गया। अब कबूतर और चिट्ठी पत्री वाला जमाना तो रहा नहीं की महीनो महीने इंतजार किया जाए। बस किसी पर दिल आया और तुरंत ख्याल उसके ऊपर जाहिर कर दिया । और सोशल मीडिया पर तो यह और भी आसान है किसी को भी हॉट वाली इमोजी भेजो और अपनी फीलिंग धीरे से चिपका दो। अगर उधर से भी हाॅट वाली इमोजी आ गया तो एक नया अध्याय शुरू हो जाता है। जिनके पन्ने गुलाबी और भविष्य काला रहता है। पर चलिए इतना सब कौन सोचता है । भविष्य को सोचकर वर्तमान को क्यों नीला पीला किया जाए। अब जहां दिल लगाना है वहां पर दिमाग लगाने का धत करम क्यों करना है ।
और उधर से शब्दों में हां हो जाए तो बल्ले बल्ले नहीं तो.. तू नहीं तो और सही और नहीं तो और सही.. इसका ऑप्शन तो हमेशा है। अगले स्टेशन के तरफ बंदा बढ़ जाता है। आजकल वह जमाना नहीं रहा की हीर रांझा वाली बेवकूफी की जाए और लैला मजनू के जैसे पत्थर खाया जाए। 2 मिनट के लिए मान लीजिए की हीर रांझा के जैसे पत्थर खा भी लिया जाए तो आखिर उससे मिलना क्या है? इस पर भी विचार विमर्श जरूरी है। अब एकदम आंखें मूंद कर तो चला नहीं जा सकता। आखिर वक्त ने लोगों के साथ-साथ इन प्रेम के पंछियों को भी होशियार कर दिया है।
खैर आगे बढ़ते है… उधर इंटरनेट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सहयोग से दिल मिल जाता है। झपटू जी भी इस महीने की प्रतीक्षा पूरे वर्ष करते हैं। इस वर्ष भी कर रहे हैं झपटू जी डिजिटल और रियल दोनों ही तरह के डेटिंग करते हैं। अब डेटिंग करते हैं तो खर्चा भी होता है। पिछली बार तो डेटिंग का खर्चा घर का चोरी छुपे अनाज बेचकर निकाल लिया था।
लेकिन इस बार सोचना पड़ रहा है। क्योंकि पिछली बार उनके पिताजी को शक हो गया था। वैसे उन्होंने सरकार के पास इस बार एप्लीकेशन भेजी है वैलेंटाइन डे का भत्ता और खर्चा देने के लिए देखिए ।देखिए सरकार कब तक उनकी अर्जी मंजूर करती है। और बस उनका वैलेंटाइन डे सही सलामत निकल जाऐ। वैसे दूसरे ऑप्शन के तौर पर उन्होंने इस बार भूसा बेचने का प्लान बनाया है। अगर सक्सेस हो गया तो उन बेचारे का भी वैलेंटाइन डे अच्छे से मन जाएगा।
लेकिन सरकार को गंभीरता से इस पर विचार विमर्श करना चाहिए। या संसद का अधिवेशन बुलाना चाहिए। जिसमें यह चर्चा हो की प्रेम करने वालों को वैलेंटाइन भत्ता मिलना ही चाहिए । आखिर युवा वर्ग के जीवन मरण का प्रश्न है और यदि देश का भविष्य ही खुशहाल नहीं रहेगा । तो उस देश का भविष्य क्या होगा? आप सोच सकते हैं तो देश हित में सरकार को गंभीर चिंतन मनन करना चाहिए।
— रेखा शाह आरबी