पूनम का चांद
पूर्णिमा की रात है धरती पर नव यौवन खिला,
रात रानी के मुस्कुराने से पवन में मकरंद घुला,
तारों की टोली गगन में निकली टिमटिमाती हुई,
अधंकार को हरा संजीवनी आभा छिटकाती हुई ।
पावन सोम रश्मियां दसों दिशाओं में जो बिखरी,
शीतल तेज से प्रकृति की रमणीक रंगत निखरी,
सोलह कलाओं से सुधाकर बरसा रहा जो सुधा,
शांत, सौम्य, सौंदर्य से सुवासित हो उठी वसुधा ।
धरती की चांद कर रहा है आज भावमय भक्ति,
जैसे जागृत हो गई हो आत्मिक संजीवनी शक्ति,
निर्मल, निश्छल, निरंजन, निरंकुश साज तरंगित,
कण-कण में बसा अनन्य प्रेम हो उठा उमंगित ।
सागर पर लहराती हुई लहरों ने रजकणों को चूमा,
आया तीव्र ज्वार समुद्र जल कम्पायमान हो झूमा,
सुप्त “आनंद” की कलिकाएं हिय में डोलने लगी,
कानों पर दस्तक दे सुरों का संगीत घोलने लगी ।
चकोर ने चांदनी रात में प्रेम संदेशा चांद को भेजा,
आज अपना खुशनुमा आलिंगन मुझे ताउम्र देजा,
हृदय गद्गद् हुआ अतंस की झिलमिलाहट से यूं,
हर प्राणी प्राणमय हुआ गुपचुप सरसराहट से यूं ।
— मोनिका डागा “आनंद”