यात्रा वृत्तान्त

धरती की नायाब फ़कीली अमानत कश्मीर श्रीनगर

छैल-बांका हृदयगामी तथा लौकिकता में अलौकिकता का स्वरूप है, धरती की नायाब फ़नीली अमानत कश्मीर (श्रीनगर)।- भव्यता प्रकृकि से कलोल करती हुई कश्मीर सांस्कृति की सुरिभ को बुलंदी देती है। यहां खूबसूरती के हक़ीक़ी, प्रयोगी, प्रतीकात्मिक, मूर्त तथा अमूर्त बिम्बों के मर्मस्पर्शी दृश्य मानव को जन्नत का अहसास करवाने के अर्थ वख़्श जाते है। बटाला पंजाब से प्रसिद्ध साहित्यकार तथा साहित्यक फोटोग्राफर श्री हरभजन सिंह बाजवा का फ़ोन आया कि कश्मीर चलेंगे। मैंने झटसे हाँ कर दी। हमारे साथ प्रसिद्ध शायर जनाब जसवंत हांस, सुच्चा सिंह रंधावा, सुखदेव सिंह काहलों, संतोख सिंह समरा तथा अमरजीत सिंह भी तैयार हो गए।

लम्बे सफर तथा महंगे शहर जाना हो तो एक गरूप ज़रूर होना चाहिए। इस से पैसा रूपए भी बचता है और मनोरंजन भी अधिक होता है क्योंकि टेक्सी में लगभग 7 व्यक्ति ही बैठ सकते है। हम सुबह 9 बजे के करीब समस्त दोस्त गुरदासपुर पंजाब के बस स्टैंड से बस लेकर जम्मू की ओर चल पड़े। मैं बताना चाहता हूँ कि गुरदासपुर शहर का नाम गुरिया से प्रचलित हुआ। बाबा गुरिया जी का परिवार ही गुरदासपुर के प्रथम निवासियों में था। गुरदासपुर की सीमा पाकिस्तान की सीमा से जुड़ती है। गुरदासपुर के आस-पास अनेक ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थान देखने योगय हैं, ख़ास तौर पर श्री गुरू नानक देव जी के नाम पर बसा प्रसिद्ध कस्बा डेरा बाबा नानक।

गुरदासपुर से हम कस्बा सरना तथा माधोपुर से गुजरते हुए जम्मू की ओर बढ़ते जा रहे थे। कस्बा सरना एक ऐसा स्थान है यहां हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू के वाहनों का संगम होता है। सरना से गुज़र कर ही वाहन जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल को जाते हैं। पठानकोट से भी जम्मू-कश्मीर या हिमाचल जाया जाता है। माधोपुर कस्बे के बाग़ तथा नद-नहरों का नज़ारा देखने वाला होता है। नहर के छोर पर सरकारी होटल है तथा प्राईवेट ढाबे तथा होटल भी हैं। माधोपुर के साथ कल-कल रावि दरिया बहता है। रावि दरिया के ईधर पंजाब की सीमा है, इसके पार ऊपर जम्मू कश्मीर की सीमा है। माधोपुर पार करते ही फ़ोन बंद हो जाते हैं, कुछ फ़ोन चलते रहते हैं।

रावि दरिया पार करते ही कुछ मिनटों के बाद प्रसिद्ध कस्बा लखनपुर तथा सांबा आ जाता हैं। यहां जम्मू का बैरियर है। बैरियर पार करते ही यहां बसें तथा अन्य वाहन रूक कर जाते हैं। यहां लोग चाय, पानी, नास्ता आदि करते हैं। इस स्थान पर मूंगी की दाल के बड़े-भल्ले, पकौड़े आदि बहुत स्वादिष्ट तथा मशहूर हैं। खट्टी मीठी चटनी, मूलीकश की मूली, मसालेदार चटपटी मिश्रित चटनी मुंह को स्वाद-स्वाद कर जाती है। अनेक ही परिवार इस धंधे से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।

इस के पश्चात अनेक ही पुल पार करते हुए हम लगभग तीन घण्टे के पश्चात जम्मू पहुंच गए। जम्मू बस स्टैंड के बाहर अनेक ही टैक्सी वाले मिल जाते हैं। हमने टैक्सी ड्राईवरों से बातचीत की। जम्मू से कश्मीर का रेट तय करने लगे। इस स्थान से टैक्सी सस्ती मिल जाती है। क्योंकि जो ड्राईवर कश्मीर श्रीनगर से सवारी लेकर आते हैं वह फिर ख़ाली हाथ नहीं जाते, सवारी लेकर ही जाते हैं। इसलिए टैक्सी सस्ती पड़ती हैं। लगभग तीन हज़ार रूपए में 7 सीटों वाली टैक्सी मिल गई। नीम पहाड़ी श्रेत्र का नज़ारा देखते हुए टैक्सी अपनी आवाज़ से दोड़ने लगी। कई सुरंगों के बीच से गुज़रते हुए टैक्सी अपने वेग के साथ दौड रही थी।

पटनीटाप की सबसे बड़ी सुरंग लगभग 9 किलोमीटर सुरंग का नज़ारा भी कमाल का है। इस सुरंग के बीचो बीच निकलने पर लगभग 6 मिनट लगते हैं। हम रास्ते में किसी होटल से खाना खाकर रात को 8 बजे के करीब डल झील के सामने तुली होटल में पहुंच गए।

जब भी कश्मीर जाओ कोशिश करें की कमरा डल झील के सामने वाले होटल में ही लिया जाए। डल झील के साथ-साथ होटल तथा ढाबे ही ढाबे हैं। बाज़ार है। तुली होटल में हमें एक कमरा लगभग नौ 9 सौ रूपए में मिल गया। हमने तीन कमरे ले लिए।

रात खाना खाने के बाद गप-छप लगाकर सो गए। सुबह हमने डल झील की मनमोहक लाजवाब तस्वीरें कैमरें में कैद की। हमने पर्यटन (घुमने) का सारा प्रोग्राम बना लिया। डल झील में शिकारे में घूमने का प्रोग्राम आखि़र में रखा।

हम कश्मीर में लगभग एक सप्ताह ठहरे। कश्मीर के आस-पास या दूर के शहर देखने के लिए जाते तथा किराए पर टैक्सी ले लेते। सात सवारी वाली एक टैक्सी दौ से ढाई हज़ार में मिल जाती थी।

कश्मीर के सारे मुग़ल बाग़, पहलगाम, गुलमर्ग, सोन मर्ग, प्रसिद्ध शंकराचार्य मन्दिर, गुरूदारे आदि कई खूबसूरत स्थानों को मस्तिष्क तथा कैमरे में कैद किया।

छैल-छबीला, रंग-रंगीला तथा सुन्दरता का इनसाईकलोपीडिया है कश्मीर। कश्मीर की विश्व प्रसिद्ध डल झील रोज़गारदाती है। वैकुंठ की भव्य परिभाषा, अदभुत करिश्मा, धार्मिक स्थानों का देवलोक। कश्मीर की धरती को प्राकृति ने दुल्हन की तरह श्रृंगार दिया है। सम्पूर्ण आनंद, हर्ष का बहुत कीमती खज़ाना। प्रकृति यहां साहित्य बख़्शती है। भव्यता के विभन्न अलंकरों से माला माल। प्राकृति यहां हज़ारों- लाखों ही खूबसूरत रंगों के धरती पर अलंकार करती हुई वसीअत लिखती है। प्रतीक बिम्ब, तशबीहें (उपमा) आदि प्राकृति की रचना का ही स्वरूप है। कश्मीर की धरती अदभुत कीमती फसलों की जन्मदाती है। आयुर्वेद की मूल जड है इस धरती की वनस्पति। प्राकिृत की कोई भाषा नहीं होती परंतु इसको प्रत्येक प्राणी महसूस कर सकता है। कश्मीर में जब कुदरत सुंदर पहाड़ियों के नगन तन पर दस्तख़त करती है तो वातावरण में ठंडक अपने जलवे का मज़ा दे देती है।

कश्मीर (श्रीनगर) में डल झील सबसे भव्य प्रसिद्ध देखने वाला स्थान है। यहां कुदरत ने प्रत्येक शै (वस्तु) में सुंदरता भरकर परमात्मा के रूप का एक भाग अलंकार कर दिया है। प्राकिृत अपने गुलफाम अभिवादन में अभिवंदन करती प्रतीत होती है।

डल झील का पानी कई रंगों में अपने रूप बदलता है। कुदरत का अदभुत रूपमान अनुपम नज़ारा। प्राकृति जैसे भव्य, मर्मस्पर्शी विभन्न विधायों में दृश्यावालियों का साहित्य लिख रही हों।

स्वच्छ पानी की यह भारत की सबसे बडी झील है। इसकी कुल लम्बाई 8 किलोमीटर तथा चौढ़ाई 4 किलोमीटर है। डल झील को श्रीनगर का हृदय भी कहा जाता है। इस झील के साथ मुग़ल भाग़ शोभनीए हैं। जैसे चश्मेशाही, नेहरू पार्क, परि बाग़, निशात बाग़। डल झील के चारों ओर ऊंचे, नाटे हरियाली भरे पर्वत जैसे लोगों को शुभकामना आर्शीवाद दे रहे हों। यह प्राचीन डल झील आज भी आधुनिकता के परिधान में कश्मीर की संस्कृति तो धनाढय करने आने में हमेशा अनवरत तत्पर रहती है।

सुबह-शाम हवा की हलकी सुरसुरी जिस्म में एक दिव्य आनंद का अहसास देती प्रतीत होती है। भव्य दृश्यावालियों से माला माल कश्मीर

रात के समय शिकारे (सुसज्जित नांव) में बैठकर घूमने का अपना ही नज़ारा होता है। रात के समय चमचमाती रोशनी में, चंद्रमां की ठंडी लौ में सारी झील दुल्हन की भांति अलंकारित हो जाती है।

रात के समय जग-मग-जग-मग झील को गोल्डन झील की संज्ञा दी जाती है। रात के समय झील में पड़ती रोशनी एैसी प्रतीत होती है जैसे सारा पानी ही रोशनी का पर्यावाची हो गया हो।

इस झील के साथ कई झीलें और भी पड़ती हैं जैसे लैटस लेक, गुलफाम लेक आदि

झील के बीच थोड़ी दूरी पर दाई-बाई और दीर्घ मार्किट हैं। समस्त बाज़ार स्थिर नांवों कश्तियों में सुसज्जित है। बड़े आकार की नांवों में बाज़ार देखने का अपना ही मज़ा है। जैसे मनुष्य जन्नत में उतर आया हो।

झील के पानी में कई तरह की सब्जियां भी पैदा की जाती है। इस स्थान को वैजीटेबल लैंड कहते है। झील के बीच वाले बाज़ार को मीना बाज़ार कहते हैं। यह लगभग 25 किलोमीटर लम्बा है। इस वैजीटेबल लैंड में टमाटर, कद्दू, खीरा, खरबूजा आदि की फसल बोई जाती है। इस सारी झील को देखने के लिए कम-ज-कम दो दिन लगते हैं।

इस झील के समीप ही जनरवान तथा महां देव पर्वत है तथा पहाड़ों की चोटियां ऊपर सारा वर्ष बर्फ पड़ी रहती है।

डल झील से ही परि महल तथा सैंटोर होटल साफ़ नज़र आते हैं।

डल झील के ठीक बीच चार चिनार का छोटा-सा-टापू अपनी भव्यता का परिचय देता नज़र आता है, जिस में खूबसूरत बाग़ अपनी सुषमा दृष्टमान करता है। चार चिनार को देखने के लिए केवल शिकारे के ऊपर ही जाया जा सकता है। नेहरू पार्क जाने के लिए भी शिकारे की ज़रूरत पड़ती थी। लाल चौंक से यह झील लगभग अढाई किलोमीटर की दूर पर है।

हाऊसबोटस इस झील की सुन्दरता को जन्नत का दर्जा देने की गवाही भरते हैं। खूबसूरत साज-सज्जा से संवरे, आदित्य रंग-बरंगे, मर्मस्पर्शी आधुनिक निर्माणशैली में हाऊस बोट वाकई जन्नत का आभास देते हैं। यह सुंदर हाऊसबोट झील के किनारे एक लम्बी कतार में खड़े पर्यटकों का ख़ामोश अभिवादन करते महसूस होते हैं।

सैलानी इन हाऊसबोटस में रहना ज़्यादा पसंद करते हैं। एक हाऊसबोट में दस से बारह आदमी रह सकते हैं। हाऊसबोट तक जाने के लिए मालिक शिकारा भेजते हैं जिसका किराया हाऊसबोट में शामिल होता है। शाम को हाऊसबोट बालकानी या छत के ऊपर बैठकर डल झील का नज़ारा लिया जाता है जो मस्तिष्क में सदैव अंकित हो जाता है। यहां फोटाग्राफी अपनी पहचान छोड़ती है।

झील में बोटनुमा दुकानों कें प्रत्येक वस्तु मिल जाती है विशेषतौर पर कश्मीर कला की वस्तुएं, कश्मीर, शाल, कालीन, केसर तथा पेपरकशाी का सामान दुकानदार शिकारे में भरकर आपके हाऊसबोट में कश्मीर यहां अपनी सुन्दरता से माला माल है। किसी समय का धनाढय (व्यापार) शहर था। देश-विदेश के लोगों का तांता लगा रहता था परंतु आजकल पर्यटक (सैलानी) वर्तमान माहौल को देखते हुए डरते ही नहीं आते। यहां का व्यापार मद्धम पड़ जाता है। ख़ास करके शिकारे हाऊसबोट की तरसयोग हालत हो गई है। फाईव स्टार से लेकर निम्न हाऊसबोटों की हालत का बुरा हाल है। विरले-विरले लोग यहां आते हैं। बेशक प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े प्रबंध हैं परंतु माहौल से डरकर पर्यटन कम ही आते हैं। जनता तथा सैलानियों का पूरा इज्ज़त-सम्मान है।

पर्यटकों की संख्या बहुत कम हुई है। फिर भी कश्मीर, कश्मीर ही है। एक अदभुत धरती का वैकुण्ठ।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409

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