होगा क्या अंजाम
उनकी कर तू साधना, अर्पण कर मन-फूल।
खड़े रहे जो साथ जब, समय रहा प्रतिकूल॥
जंगल रोया फूटकर, देख जड़ों में आग।
उसकी ही लकड़ी बनी, माचिस से निरभाग॥
कह दें कैसे हम भला, औरत को कमजोर।
मर्दाना कमजोर जब, लिखा हुआ हर ओर॥
कलियुग के इस दौर का, होगा क्या अंजाम।
जर जमीं जोरू करें, रिश्ते कत्लेआम॥
बुरे हुए तो क्या हुआ, करके अच्छे काम।
मन में फिर भी आस है, भली करेंगे राम॥
प्रयत्न हजारों कीजिए, फूंको कितनी जान।
चिकनी मिट्टी के घड़े, रहते एक समान॥
बात करें जो दोहरी, कर्म करें संगीन।
होती है अब जिन्दगी, उनकी ही रंगीन॥
जीते जी ख़ुद झेलनी, फँसी गले में फांस।
देता कंधा कौन है, जब तक चलती सांस॥
— डॉ. सत्यवान सौरभ