गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कितना झूठ है, कितना सच,
आधा झूठ है, आधा सच।

झूठ के बाँट रखे काँटे पर,
हमने तोलके लिक्खा सच।

चूहे झूठ के बलशाली,
देखो कितना कुतरा सच।

झूठ बड़े लगते सारे,
उनके सामने बच्चा सच।

झूठ सतह पर रहता है,
सागर से भी गहरा सच।

झूठ की चलती चक्की के,
दो पाटों में पिसता सच।

चाहे ग़ज़ल ये झूठी ‘जय’,
पर शेरों में उतरा सच।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से

Leave a Reply