ग़ज़ल
देख दूजों को हँसा करके मज़ा लेते हैं।
आज भूखों को खिला करके मजा लेते हैं।।
प्यार करते हैं बताते कब ज़माने को ही।
दर्द अपना ही छुपा करके मज़ा लेते हैं।
साथ कोई भी नहीं देता बढ़े जाते सब।
सोच औरों को बता करके मज़ा लेते हैं।।
जान देने की करें जो बात हरदम देखो।
सामने आ मुँह घुमा करके मज़ा लेते हैं।।
रख हुनर वे तो किसी को भी दिखाते ही कब।
वे कलाकृतियाँ दिखा करके मज़ा लेते हैं।।
आज रखते ही नहीं देखो वफ़ा भी दिल में।
वे ख़ुदा खुद को जता करके मज़ा लेते हैं।।
वे सुनो मानें न मानें ही ख़ुदा की देखो।
अब वही मूरत सजा करके मज़ा लेते हैं।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’