गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हुई कब गुफ्तगू कैसे किसने क्या कहा होगा
के छत पर हम नहीं थे चांद भी तन्हा रहा होगा।

ख़ामोशी आंखों की पढ ली ये उनका हुनर ही है
जबकि आंखों में अश्कों का एक पर्दा रहा होगा।

उसके हर सितम मंजूर है कुछ ऐसा लगता है
मुझपर इश्क का पिछले जनम कर्जा रहा होगा।

वो मुझको दूर से तकता है मेरा हमनवा बनकर
कभी आया न मेरे रुबरु वो डरता रहा होगा।

बहुत कुछ कहना था उनसे उन्हें भी मुझसे सुनना था
मैं बेचैन हूं वो मेरी याद में मरता रहा होगा।

कोई सब जाए जानिब और खबर उनकी ले आए
मुझे मालूम है वो आह भी भरता रहा होगा।

— पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

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