गीत
धूम धड़ाका ढोल नगाड़े रंगों की बरसात।
होली भीतर खुशियां लेकर आई है प्रभात।
त्योहार प्यारे भारत मां के पाक पवित्र गहने।
कर्मठ भीतर मानवता के चांद सितारे रहने।
फूलों में फिर ख़ुशबूयों की आई है सोगात।
होली भीतर ख़ुशियों लेकर आई है प्रभात।
भिन्न-भिन्न पहनावे में है रंगों की गहराई।
धरती ऊपर जैसे कोई ऋतु अनोखी आई।
एक सुत्र में बंध चुके हैं हर इक के जज़्बात।
होली भीतर ख़ुशियां लेकर आई है प्रभात।
मद्धम-मद्धम धूप के भीतर सांझ की है अंगड़ाई।
मौसम के परिवर्तन अन्दर गूंज रही शहनाई।
चंचलता के मंज़र में अठखेली करती बात।
होली भीतर ख़ुशियां लेकर आई है प्रभात।
भाईचारे की समता में सुन्दरता की आशा।
अल्ला वाहिगुरू राम करे सब की दूर निराशा।
एक अनेक सुगंधियों वाली गुलशन में ख़ैरात।
होली भीतर ख़ुशियां लेकर आई है प्रभात।
मेले पर्व त्योहार सदा ही धरती ऊपर आते।
लोकिक जीवन में रचनात्मक ऊर्ज को हैं लाते।
बालम के गीतों में दिखती बालम की औकात।
होली भीतर ख़ुशियां लेकर आई है प्रभात।
— बलविन्दर बालम