हास्य व्यंग्य

मच्छर का एकालाप

मैं एक नन्हा – सा मच्छर हूँ।यह आप सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।जितना ही मैं आपके निकट आता हूँ,आप मुझसे दूर-दूर भागते हैं। मुझे दुरदुराते हैं।भगाते हैं। यही नहीं मुझे मार डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।आपको यह अच्छी तरह से विदित होना चाहिए कि मैं भी आप में से ही एक हूँ।जितने भले आप हैं,मैं भी उतना ही नेक हूँ। आप कहेंगे कि कैसे ?यह सब तुम कैसे कह रहे हो कि तुम भी हम में ही एक हो? कहाँ हम विशालकाय मनुष्य और तुम नन्हे- से मच्छर! भला कैसे हो सकती है हमारी तुम्हारी टक्कर। तुम तो दो अँगुलियों के बीच ही मसल दिए जा सकते हो। मसल भी दिए जाते हो। और तुम हमारी बराबरी करने पर तुले हुए हो! आखिर तुम कहना क्या चाहते हो नन्हे मच्छर ?

मेरे प्रिय मानव ! मेरी बात ध्यान देकर सुनो।मेरा रूप रंग आकार प्रकार तुमसे सर्वथा भिन्न है तो क्या हुआ ! वास्तविकता तो यह है कि हम मच्छरों में तुम्हारा ही रक्त बह रहा है। यह ठीक है कि हम तुम्हारी औरस संतान नहीं हैं। हमें जन्म तो हमारी माँ मछरी और पिता मच्छर ने ही दिया है,किन्तु जिस रक्त से हमारा लालन -पालन और पोषण हुआ है ,वह तुम्हारा ही है। यह अलग बात है कि हमारी रगों में न जाने कितने पुरुषों और कितनी स्त्रियों का रक्त बह रहा है,कुछ याद नहीं। और इसका लेखा-जोखा भी कभी बनाकर नहीं रखा। भला हमारे पास इतना अवकाश ही कहाँ है जो कभी इधर कभी उधर मुँह मारने से फुर्सत मिले?रात -दिन सताती हुई भूख हमें तुम जैसे मानवों को ढूंढ़ने के लिए बाध्य जो कर देती है! इसलिए व्यस्ततावश समय नहीं मिलता कि यह हिसाब भी बनाकर डायरी मेंटेन करें कि कब किसका और कितना रक्त पिया। हाँ,इतना तो याद है कि कभी-कभी कुछ ऐसे भी स्त्री-पुरुष मिल जाते हैं कि उनके रक्त में लहसुन प्याज की तेज बदबू और कभी- कभी तो शराब की दुर्गंध हमारे नथुने फाड़ डालती है। हमें तो दाल साग दूध फल आदि के आहारी ही भारी भाते हैं।इसीलिए हम शाकाहारियों के पास खिंचे चले जाते हैं।

हे प्रिय मानव ! हमारी आपसे अपनी रक्षा के लिए यही गुजारिश है कि आपने हमें मारने के लिए सैकड़ों उपाय ईजाद कर लिए हैं। अपने घर- परिवार की बात घर से बाहर बतानी तो नहीं चाहिए, किन्तु आप तो हमारे अपने हैं,इसलिए बताए देते हैं।वास्तव में हम नर मच्छर मनुष्यों को नहीं काटते और न ही कोई बीमारी फैलाते हैं।हमारी आयु भी दस दिन से अधिक नहीं होती। वह तो केवल अपना वंश वर्द्धन के लिए हमें भगवान ने पैदा कर दिया है।पेड़ पौधों के रस से ही हम अपनी उदर पूर्ति कर लेते हैं।तुम्हारे खून की प्यासी तो ये हमारी घरवालियाँ ,बहनें और मम्मियाँ हैं,जो तुम्हें रात- दिन चैन से सोने नहीं देतीं। उधर उनकी उम्र भी चालीस से पचास दिन तक होती है। अर्थात वे लंबी आयु तक जीती हैं।वे दस -दस बच्चे तक पैदा करती हैं। हमें तो बच्चे पैदा करने से ही फुर्सत नहीं मिलने देतीं और हमारे हिस्से का खून भी खुद ही पी जाती हैं।

यों तो हमारे 47 दाँत होते हैं, किंतु हमारी स्त्रियाँ अपनी सुई जैसी सूंड को ही आपकी त्वचा में छेदकर खून पी लेती हैं।हम आपसे कम बुद्धिमान भी नहीं हैं,हमारा शरीर छोटा है तो क्या हुआ ! हमारी भेजे में दो लाख मष्तिष्क कोशिकाएँ होती हैं।जो मादा मच्छर आपका रक्त पीती है,वह आकार में हमसे बड़ी होती है।बड़ी नहीं होगी तो और क्या होगा ! रात -दिन आपका खून जो पीती है।अपनी छहों टाँगें जमाए हुए निश्चिंत होकर देह पोषण करती है।

हे प्रिय मानव!अपनी छहों टाँगबद्ध होकर हम विनती करते हैं कि मच्छर जाति की रक्षा करो।ज्यादा सफ़ाई – स्वच्छता का ध्यान मत रखा करो। जब परमात्मा ने हमें पैदा किया है तो हमें भी जीने का अधिकार है।इसलिए नाले नालियों में ऐसा कुछ उपचार मत करो कि हमारा अंश वंश ही मिट जाए।यह बहुत बड़ा पाप है।आप तो अहिंसा के पुजारी हो,फिर हमें मारने – मिटाने की क्यों तैयारी हो ? जैसे तैसे तो कह-कह कर हम पुरुष मच्छरों ने इन एनाफिलिजों से मलेरिया खत्म कराया। बस अब थोड़ा -सा रक्त पीती हैं,तो पी लेने दो।थोड़ी देर तक खुजली ही तो होनी है बस। उसके बाद कुछ भी नहीं। उन्हें भी तो जीने का हक है। कोई अन्य बीमारी तो नहीं फैलातीं। आखिर तब क्या होगा ,जब हमने भी ‘मच्छर बचाओ संघ’ बना लिया! आपको जवाब देते नहीं सूझेगा। नाली -नाली में घर -घर में एक ही नारा बुलंद होगा :’मच्छर बचाओ !’ ‘दंशक बचाओ’! इसलिए एक बार शीतल मन से विचार करो और ध्यान रखो कि ‘अहिंसा परमो धर्म ‘! फिर हमसे मत कहना ,हमें नहीं आती रक्त पीने में कोई शर्म। क्या समझे प्रिय मानव ! हमारे कहने का मर्म? तुम भी करो अपना कर्म और हमें भी पालने दो अपना धर्म!

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040

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