वेलेंनटाइन डे भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही :मातृ-पितृ दिवस मनाएं
पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में हम भारतीय इतने अंधे हो गए हैं कि हम अपनी प्राचीन संस्कृति-सभ्यता, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, रहन-सहन, धर्म-आस्था, विस्वास, कर्तव्य आदि को लगभग भूलते जा रहे हैं।जो हमारी भारतीय संस्कृति के लिए कदापि उचित और न्याय संगत नही है।इस पर हमें चिंतन मनन करने की निहायत ही आवश्यकता है।और इसके भयंकर परिणाम के बारे सोचना चाहिए।
हमे यह सोंचना चाहिए कि हम कहाँ थे?क्या थे?और कैसे थे? और अब क्या हो गए? यदि इस पर तनिक भी विचार करेंगे तो हमे समझ मे आ जायेगा कि हमारी प्राचीन संस्कृति-सभ्यता कितनी भव्य और अद्भुत थी।जिसको पूरे विश्व ने आत्मसात किया।अनुकरण किया।यहाँ के धर्म,ज्ञान,ज्योतिष,तंत्र-मंत्र-यंत्र वास्तुशास्त्र,ललीत कला,संगीत कला,चित्र कला समृद्धि कितनी विकसित कर सुविख्यात थी।और इसीलिए हमारे देश मे पूरे विश्व के बड़े-बड़े विद्वतजन टॉल्स्टाय जैसे लोग यहाँ पर आए और ज्ञान प्राप्त किए।हमारे देश की विद्यापीठ कहे जाने वाले तक्षशिला विश्वविद्यालय, नालंदा की विश्वविद्यालय, गुरुकुल परम्परा और ज्ञान-विज्ञान के लिए विश्व विख्यात थी।और आज हम पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भाग रहे हैं।
14 फरवरी को विदेशों में “वेलेंटाइन डे” के रूप में मनाया जाता।यह उनकी अपनी संस्कृति है।हमे कोई दिक्कत नही है।अपनी संस्कृति धर्म परम्पराएँ आदि को मानने के लिए स्वतंत्र हैं।पर हम भारतीय बेवजह क्यों बाध्य हो रहे हैं? हम इसे क्यों मना रहे हैं? हम अपनी छबि क्यो खराब कर रहे हैं? यह चिंतन का विषय है।हमारी संस्कृति का यह अंग नही है।यह हमारी परम्परा के बिल्कुल खिलाफ है।इस दिवस को हम अपनी संस्कृति के अनुरूप “मातृ- पितृ” दिवस के रूप में मनाए तो ज्यादा सार्थक और उचित प्रतीत होगा। और हमारी संस्कृति का उत्थान होगा।हम निश्चित तौर पर परिष्कृत होंगे।हमारी प्राचीन संस्कृति और विकसित होगी।हमारे माता-पिता का सम्मान होगा।हमारे अंदर समाज मे देश मे संस्कार स्थापित हो पायेगा।और यह हमारे लिए गौरव की बात होगी।सम्मान की बात होगी।
हमारा देश विश्व गुरु कहलाता है।धर्म गुरु कहलाता है।यहाँ के धर्म आस्था विश्वास भक्ति भावना,देवी-देवता तीर्थ स्थल पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है।और इसीलिए आज विदेशी लोग हमारी संस्कृति का अनुकरण कर रहे हैं।उनको शांति और सुकून मिल रहा है।यह गौर करने वाली बात है।विदेशों का जीवन ऐसो-आराम की तो है पर शांति नही है।हमारे देश मे शांति है।और इसी शांति की तलाश में विदेशी हमारे देश की ओर उन्मुख हो रहे हैं।और हम है कि उस शांति को नजर अंदाज कर रहे हैं।यह चिंतन का विषय है।
— अशोक पटेल “आशु”