सेवानिवृति
सेवानिवृत होते ही
मुक्त हुआ नौकरी की बंदिशों से
लगा जैसे टूट गई हो बेड़िया गुलामी की
आज़ाद हूँ बेपरवाह हूँ अब
सुबह ना जल्दी उठने का झंझट
समय पर ऑफिस पहुँचने की ना हड़बड़ी
बॉस की ना रोज रोज की फटकार
ना चाटुकारिता बॉस की
अब आराम से उठते हैं अपनी मर्जी से
जब पर्दे के पीछे से
सूरज झाँकता है खिड़की से