गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मिलता नहीं चैन किसी शय से मगर
रहे चेहरे पर खुशी यही दुआ मांगे है

ज़ीस्त में दर्द और ग़म मेरे साथ रहेगी
जीने के लिए बस जरा रिदा मांगे है

ढूंढ रहा हूं उस खुदा को गली-गली मैं
ये दुनिया वाले भी उससे क्या मांगे है

चलते-चलते यूं ही मिला हमसफ़र मुझे
बातों में रंज ओ ग़म की सदा मांगे है

होकर इश्क़ में जबसे कैद बला मांगे है
मुजरिम दिल का होकर सजा मांगे है

उदासियां मुझको तो घेरे रखती है बहुत
ये आईना भी अब चेहरा नया मांगे है

रौशनी से रौशन न हो राह क्या फायदा
भोर के उजाले ही बस खुदा मांगे है

— सपना चन्द्रा

सपना चन्द्रा

जन्मतिथि--13 मार्च योग्यता--पर्यटन मे स्नातक रुचि--पठन-पाठन,लेखन पता-श्यामपुर रोड,कहलगाँव भागलपुर, बिहार - 813203