लघुकथा

लघुकथा – अनुभव

भावना और आरती आज साथ साथ बाजार आईं हुईं थीं। एक फल वाले के ठेले पर वो फल खरीद रहीं थीं। आरती ने फल वाले से पूछा-“अंगूर कैसे भाव दिए ?”
फल वाले ने कहा-“दो सौ रुपए किलो है बहनजी। कितने तौल दूं?”
आरती ने कहा-“भईया, एक पाव ही देना। क्या है मुझे तो शुगर है। मेरे पोते के लिए ही है।”
यह सुनकर फल वाले ने कहा-“कोई बात नहीं बहन जी, आप ये कीवी ले जाइए। इसमें फाइबर होता है और ये अमरूद तो शुगर वालों के लिए बहुत अच्छा होता है। सेब भी आप खा सकती हैं। सेब में विटामिन ए होता है। पपीता में भी विटामिन ए होता है जो आंखों के लिए भी अच्छा होता है। चीकू, केला ये सब शुगर को बढ़ा सकते हैं पर ये सब फल शुगर वालों को खाना चाहिए।”
यह सुनकर भावना ने सेब वाले से पूछा-“भईया, आप कहाँ तक पढ़े हैं?”
फल वाले ने अंगोछे से अपना हाथ पोछते हुए कहा-“हम कहाँ पढ़े लिखे हैं बहन जी, पढ़े लिखे होते तो ये काम थोड़े न करते होते।मेरे अम्मा -बाबूजी मजदूरी करते थे और हम घर में छोटी बहन को संभालते थे। हम तो स्कूल का मुँह भी नहीं देखे हैं।”
आरती ने आश्चर्य से पूछा- “फिर इतना ज्ञान आपको कैसे है।आजकल पढ़े लिखे तो गुगुल देखकर ही कुछ बता पाते हैं। आपको तो विटामिन फाइबर का अच्छा नॉलेज है।वो कैसे?”
फल वाले ने हँसते हुए कहा-“बहन जी, फल बेचते हुए काफी साल हो गए। बस ऐसे ही अनुभव से और लोगों से सुनकर ज्ञान हो गया।”
भावना ने आरती से कहा-“देखो आरती अनुभव का ज्ञान कागजी ज्ञान से कितना महत्वपूर्ण होता है न।आजकल के युवा भी ऐसे ज्ञान से बेखबर हैं। तभी तो वे फल खाना छोड़कर पिज्जा ,मोमोज़, और बर्गर जैसे अनहेल्दी चीज़े खाते हैं ।” यह कहती हुई भावना मुस्कुरा पड़ी। आरती भी मुस्कुराए बिना न रह सकी।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]

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