गजल
हर पल दर्शन को तरसे पागल नयना मेरे,
तुम हो शायद इस भ्रम में रहते नयना मेरे ।
जीवन के कितने बसंत गुजरे कई जमाने,
फिर भी मन ये भरा नही कुछ ढूढें नयना मेरे ।
उजड़े चमन बहारों के जो थे बचपन के न्यारे,
उन यादों के लिए झरोखे खोजें नयना मेरे ।
गुमसुम बैठा इंसान यहाँ यादों के लिए सहारे ,
पलकें मीचें आंसू रोकें छुप-छुप रोते नयना मेरे ।
मत खोलो यादों का पिटारा ,दिल को नहीं टटोलें।,
रुकी लेखनी ‘शिव’ की अब झांके न नयना मेरे ।
— शिवनन्दन सिंह