गीतिका/ग़ज़ल

गजल

हर पल दर्शन को तरसे पागल नयना मेरे,
तुम हो शायद इस भ्रम में रहते नयना मेरे ।

जीवन के कितने बसंत गुजरे कई जमाने,
फिर भी मन ये भरा नही कुछ ढूढें नयना मेरे ।

उजड़े चमन बहारों के जो थे बचपन के न्यारे,
उन यादों के लिए झरोखे खोजें नयना मेरे ।

गुमसुम बैठा इंसान यहाँ यादों के लिए सहारे ,
पलकें मीचें आंसू रोकें छुप-छुप रोते नयना मेरे ।

मत खोलो यादों का पिटारा ,दिल को नहीं टटोलें।,
रुकी लेखनी ‘शिव’ की अब झांके न नयना मेरे ।

— शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968

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