कविता

देश का उद्धार

जैसे ही मताधिकार दिवस आया,
समारू के अंदर भी
वोट देने का विचार समाया,
पहले तो खूब सोच विचार किया,
क्या खोया क्या पाया पर ध्यान दिया,
तत्काल प्रत्याशियों को फोन लगाया,
पहले झुंझलाया,
हड़काया,
और अपनी व्यथा सुनाया,
कि मेरे पास वोट मांगने क्यों नहीं आया,
बोले मैं भी मतदाता हूं,
आप लोगों का भाग्यविधाता हूं,
चलो आप सब उम्मीदवार
एक एक कर मेरे पास आओ,
मेरे सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाओ,
तब मैं सोचूंगा कि वोट किसे देना है,
किस किस से क्या क्या और कितना लेना है,
सभी प्रत्याशी दौड़े दौड़े आये,
किसी ने मुर्गा दिया,
किसी ने पैसा,
तो कइयों ने देशी विदेशी पौआ पकड़ाये,
सबके जाते ही मतदाता प्रभु
पी के टाइट हो गया,
राह और कदमों के बीच फाइट हो गया,
लगे पैर लड़खड़ाने,
हिम्मत ही नहीं हो रहा कदम बढ़ाने,
खुद को वो पैगों के बीच डूबो गया,
मताधिकार प्रयोग से पहले सो गया,
जब जागा तब हो चुका था अंधेरा,
किसी उम्मीदवार के लिए
निकल चुका था नई उम्मीदों वाला सवेरा,
इस तरह से देश का उद्धार हो रहा था,
मतदाता और प्रत्याशी के बीच
देश के भविष्य के लिए व्यापार हो रहा था।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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