संस्मरण

सोने पे सुहागा

आज सुबह उठते ही एक वाक्य पढ़ने को मिला- “चेतना यूं ही नहीं जगती, जगानी पड़ती है. कोशिश करते रहिए.” इस छोटे-से वाक्य ने मेरी चेतना को 40 साल पहले तक पहुंचा दिया.
उन दिनों मेरी दिल्ली में पहली बार अध्यापिका के पद पर नियुक्ति हुई थी. इतने बड़े शहर की बड़ी चालाकियों से मैं अनजान थी. मैं अपना काम लगन और ईमानदारी से करती गई. बचपन से लेखन और विशेषकर कविता-लेखन में मेरी रुचि थी ही, मैं हर विषय कविता के माध्यम से पढ़ाती थी. विषय से संबंधित कविता मैं अपनी साप्ताहिक डायरी में भी लिखती थी. एक दिन प्रधानाचार्या ने कहा- “तिवानी जी, आपका काम ए वन है, जरा डायरी संभालकर रखिए, आपकी कविताएं चोरी हो रही हैं. डायरी में न लिखें तो बेहतर होगा.”
“जी मैडम, शुक्रिया.” मैंने कहा.
स्कूल बदलते रहे, नए-नए विचार मिलते रहे. एक प्रधानाचार्या ने कहा- “कविता पर तारीख भी डाल दिया करो.”
“जी मैडम, शुक्रिया.” हर नए व अच्छे विचार पर मैं कहती. मेरी कविताओं की सूची बनती गई.
एक बार एक राष्ट्रीय स्तर की एक अध्यापक नवाचार शोध प्रतियोगिता के लिए मुझे आलेख लिखना था. समय बहुत कम मिला था. मैंने शोध के लिए शीर्षक चुना- “शिक्षा में कविता के साथ मेरे प्रयोग”. इस शोध में कविताओं की वह सूची बहुत काम आई. अंततः मुझे उस शोध पर मुझे राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला. कविताओं की सूची ने मेरी चेतना जगाने में सोने पे सुहागे का काम किया था. जब भी मैं इस पुरस्कार को याद करती हूं, मुझे उन सभी अध्यापिकाओं की याद आ जाती है, जिन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इसमें सहयोग दिया था.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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