ग़ज़ल
गिरने की हर हद को पार करे है अब
अपना ही अपनो पर वार करे है अब
अपने औरा के साए में हर कोई
अपनी ही दुनिया तैयार करे है अब
अपनेपन उल्फ़त चाहत के साए में
इंसां रिश्तों का व्यापार करे है अब
इंसां पैसे रुतबे पद के लालच में
कैसा कैसा कारोबार करे है अब
साथ लगाने को रस्ते में पिछड़ों को
कौन भला धीमी रफ़्तार करे है अब
चाल चलन ईमां से क्या लेना देना
दुनिया दौलत की जयकार करे है अब
बंसल मतलब है या दैहिक आकर्षण
दिल से कोई किसको प्यार करे है अब
— सतीश बंसल