लघुकथा

वादा

बहुत दिनों से सुकेश का फोन नहीं आ रहा, न ही वह स्मिता का फोन उठा रहा था, स्मिता बहुत उदास थी, उसे सुकेश के साथ पहली मुलाकात की याद आ रही थी!
“खूबसूरत आंखों में जीवन भर कैद रहने का वादा भी भुला दिया!”
तभी मोबाइल की खनक से उसकी तंद्रा भंग हुई, “हलो जानू, मेरी आंखों का क्या हाल है?”
“आज याद आ गई आंखों की! इतने दिन कहाँ थे?”
“यार पूछ मत, किसी गाड़ी से छोटी-सी टक्कर हो गई थी, अस्पताल में था. वहाँ मोबाइल का प्रयोग करना मना था.”
“शुक्र है छोटी-सी टक्कर हुई, अब कैसे हो!”
“ठीक हूँ और सुनो, तुम्हारी आंखों में जीवन भर कैद होने का वादा निभाने आ भी रहा हूँ, वेलेंटाइन डे भी तो मनाना है न! फिर शादी की प्लानिंग!” फोन रखते हुए सुकेश ने कहा.
प्रेम के एहसास से उसका स्मित हास्य वापिस आ गया था.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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