कविता

शीतल-मंद-सुवासित बयार है प्रेम

हो समर्पण, भावों का भावों से मेल हो,
प्रेम का अभिसिंचन न कोई खेल हो,
पावन प्रेम हो गंगा के पावन घाट-सा,
प्रेम आधार सृष्टि का, न केवल शेल हो!

असीमित स्नेह से परिपूर्ण भाव है प्रेम,
कोमल ह्रदय निश्छल-सरल मन है प्रेम,
हृदयस्पर्शी किस्से-गीत-कविताओं का,
सृजन करता है पुष्पित-पल्लवित प्रेम।

आशा है प्रेम, करता दूर निराशा प्रेम,
शीतल-मंद-सुवासित बयार है प्रेम,
प्रेम से सुमन महकते, पंछी चहकते,
ऋतुओं में ऋतुराज बसंत बहार है प्रेम।

प्रेम हमारी आन है, देश की शान है,
माता-पिता का प्रेम स्वाभिमान है,
प्रेम से ही सूरज-चांद-तारे चमकते हैं,
प्रेम का अभिसिंचन प्रभु का वरदान है।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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