शीतल-मंद-सुवासित बयार है प्रेम
हो समर्पण, भावों का भावों से मेल हो,
प्रेम का अभिसिंचन न कोई खेल हो,
पावन प्रेम हो गंगा के पावन घाट-सा,
प्रेम आधार सृष्टि का, न केवल शेल हो!
असीमित स्नेह से परिपूर्ण भाव है प्रेम,
कोमल ह्रदय निश्छल-सरल मन है प्रेम,
हृदयस्पर्शी किस्से-गीत-कविताओं का,
सृजन करता है पुष्पित-पल्लवित प्रेम।
आशा है प्रेम, करता दूर निराशा प्रेम,
शीतल-मंद-सुवासित बयार है प्रेम,
प्रेम से सुमन महकते, पंछी चहकते,
ऋतुओं में ऋतुराज बसंत बहार है प्रेम।
प्रेम हमारी आन है, देश की शान है,
माता-पिता का प्रेम स्वाभिमान है,
प्रेम से ही सूरज-चांद-तारे चमकते हैं,
प्रेम का अभिसिंचन प्रभु का वरदान है।
— लीला तिवानी