गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

चाँद को आज ही तो मगन देखिए।
हँस रही चाँदनी अब सजन देखिए।।

नीलिमा ही लिए आज खुश हो रहा।
ये अभी मुस्कुराता गगन देखिए।।

जो निहारे प्रकृति को अभी जाँच लो।
खुशनुमा ये महकता चमन देखिए।।

इश्क़ मुझको हुआ जा रहा है अभी।
ताप की अब चढ़ी ये तपन देखिए।।

ये उतरती हुई नाचती ही रही।
अब धरा – चाँदनी का मिलन देखिए।

ये सुनहरी चमकती करे राज ही।
( आसमां में खिली है किरन देखिए।। )

प्यार की ही ख़ुमारी चढ़ी जा रही।
बढ रही धड़कनों की खनक देखिए।।

इश्क़ जबसे हुआ छोड़ दी जाति ही।
है हमारा यही अब चलन देखिए।।

अब बना जो लिए ये सुनो ही नियम
कर रहे हम सभी ही मनन देखिए।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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