कविता

मत करो उपहास

विकलांगों का मत करो उपहास भाई ।
अपेक्षित बल – शक्ति है उनमें समायी।
दे सको तो उन्हें आदर – भाव देना,
अपमान है, यदि कुछ कमी उनमें गिनायी।

दिव्यांगों के तन में या मन में कमी है।
फिर भी प्रतिभा की नहीं उन्नति थमी है।
स्नेह देकर मुख्यधारा में है लाना,
बर्फ पिघले, जो अभी उर में जमी है।

दिव्यांगों का नहीं टूटे धैर्य – संबल।
कर्म – कौशल से बनेगा भाग्य उज्ज्वल।
हेलन केलर, बीथोविन या अरुणिमा सिन्हा
विकलांगता के बाद भी आदर्श – अंचल।

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585