मौसम में वैश्विक परिवर्तन
मौसम में यह कैसा परिवर्तन आ गया
फरवरी माह में आम पर बौर छा गया
सर्दी में ही पानी के लिए हो रही त्राहिमाम
सर्दियों का भी अंत जैसे आ गया
दिसम्बर जनवरी में सूखे ने अपना रंग दिखाया
बारिश ने भी बेरुखी का रास्ता जैसे अपनाया
बर्फ भी पहाड़ों से खेल रही है आंख मिचौली
प्रकृति ने मानव पर जैसे अपना तीर हो चलाया
क्यों बदल रहा है मौसम कैसे हो रहा परिवर्तन
क्या कारण है कैसे हो रहा ग्लेशियरों का ह्रास
प्रकृति को छेड़ कर फिर भी नहीं मान रहा मानव
कर रहा उसको मिटाने के उलटे सीधे प्रयास
कुदरत का आज तक कौन कर पाया सामना
आंखें जब जब तरेरी तब तब पड़ा फिर हाथ थामना
प्रकृति के बनाये नियमों की धज्जियां उड़ा रहा
पहाड़ों जंगलों को मिटाने की कर रहा कामना
कुदरत ने संसार का एक संतुलन है बनाया
कहीं मैदान जंगल पेड़ पौधों वनस्पति से सजाया
बर्फ से ढके पहाड़ है बनाये जो सबको देते हैं पानी
बिगड़ा संतुलन इनका तब वैश्विक परिवर्तन है आया
प्रकृति से मत उलझ मत कर इतना गुमान
खुद तबाह हो जाएगा जो किया प्रकृति का अपमान
किसी में इतनी ताकत नहीं जो कर सके इसका मुकाबला
फिर भी कर रहा तू अपना गुणगान
— रवींद्र कुमार शर्मा