अंतर मिटते देखा
धार्मिकता और धर्मांधता में भेद मिटते देखा
आज इंसान को हमने हैवान बनते देखा !
पाप पुण्य के रस्सी कस्सी में आम जन को उलझकर
धर्म के ठेकेदार को आपना उल्लू सीधा करते देखा !
धरती पर कीड़े से रेगते इंसानो की परवाह करता है कौन
सियासदा को उनका बस सौदा ही करते देखा !
हम समझ न पाये कुछ , इससे फर्क किसको पड़ता
हर किसी को हमेशा अपना फायदा ही उठाते देखा !
मानवता का पाठ हर धर्म में सभी को पढ़ते
लेकिन मानवता को सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर रौदते देखा !
— विभा कुमारी “नीरजा”