कर्तव्य
कर्तव्य
“सर, रूक जाइए। आगे बहुत खतरा है। बम फटने ही वाला है। यदि बम को डिफ्यूज करने से पहले ही फट गया, तो आपकी जान भी जा सकती है।”
“मुझे अपनी जान से ज्यादा बस्ती के लोगों की जान प्यारी है। अपने सामने सबको यूँ मरते नहीं देख सकता। यदि मैं बम डिफ्यूज करने में सफल हो गया तो, सबकी जान बच जाएगी। वरना तो शहीद होने का गौरव मिलेगा ही…”
“लेकिन सर…”
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं। अभी बात करने का नहीं देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाने का समय है।” उसने कहा और तेजी से आगे बढ़ गया।
_ डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़