आखिर में दिया बुझ जाएगा
आरम्भ किसी चीज़ का हुआ है
उसका अंत भी अवश्य आएगा
ऊंचाईयों पर कोई कब तक ठहरेगा
एक न एक दिन तो नीचे भी जाएगा
जवान कोई हमेशा रहेगा नहीं
एक दिन सबको बुढापा आएगा
याददाश्त हो जाएगी कमज़ोर
चलने फिरने में लाचार हो जाएगा
बच्चे हो जाएंगे बड़े और समझदार
बुजुर्गों को कोई पास नहीं बिठायेगा
अपनी भी जब वैसी अवस्था आएगी
पछतायेगा पर समय फिर हाथ नहीं आएगा
चल नहीं पायेगा हमेशा
एक दिन चलते चलते रूक जाएगा
धीमी पड़ने लगेगी लौ टिमटिमायेगा
आखिर में दिया बुझ जाएगा
— रवीन्द्र कुमार शर्मा