वो हमारा गुलाब
यूँ तो पीले, लाल, सफेद…
जाने कितने गुलाब हैं खिले हुए।
पर वो हमारा गुलाब तो था खास ,
जाने कितने थे एहसास घुले हुए।
बारिश में भीगते उस रोज़….
तुम कितनी दूर से लाए थे वो गुलाब।
उसी गुलाब को जब तुमने थमाया था,
ह्रदय में जाने तब जागे थे जज़्बात।
तुम और मैं उस दिन से ही…
इस अमर प्रेम के रिश्ते में हैं कायम।
न पहले और न तुम्हारे बाद ऐसे,
अंतर्मन को छुआ किसी ने शायद।
हम दूर भी रहे बरसों पर ….
डायरी में मेरी अब भी है वो गुलाब।
जब तुम कभी इस शहर से गुज़रो तो,
दोनों मिल उसे जल में करेंगे आजा़द।
ताकि न रहे दरमियाँ अब कोई …
निशानी तुम्हारी और कोई याद।
चलो आज इस खास गुलाब को भी,
डायरी से निकाल लिखे ये शब्द आज।
वो हमारा गुलाब, जो अब होगा आज़ाद।
क्योंकि समय करता है हर बात का हिसाब।
— कामनी गुप्ता