ग़ज़ल
सुनो इस देश का ही स्तर ऊपर अब उठाना है।।
अभी सुन लो हमें अपना हुनर सबको दिखाना है।
उठाये सिर हमारे सामने अब तो यहाँ कोई।
करे हिम्मत चला आये अभी सिर जो कटाना है।।
यहाँ अब प्यार की भाषा समझता है न कोई भी।
सुनो हम हिंद के वासी यही सबको बताना है।।
चले जो आंतकी आँधी यहाँ पर सुन सभी यह लो।
हमें तो मिल अभी सबको यही अँधड़ हटाना है।।
निकालें अब सभी नफ़रत भरी बातें हृदय से ही।
अभी तो एकता से यही गुलशन सजाना है।।
समझते दर्द जो तुम भी गरीबों की गरीबी का।
उन्हें देकर नये घर अब सुनो सबको बसाना है।।
उगलते विष रहे जो भी सदा से इस ज़माने में।
हमें अब प्यार का अमृत उन्हीं को ही पिलाना है।।
बने दुश्मन हमारे जो ज़माने से सुनो अब तक।
उन्हें ही धूल प्यारे सुन सदा ही अब चटाना है।।
रखो तुम दृढ़ इरादे मन न सुन अब डगमगाये ही।
करो पक्का हृदय भी कुंभ जाकर जो नहाना है।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’