चरित्रहीन
जो खुद ही था चरित्रहीन,
पर वो हमेशा महिलाओं को
ऐसा कहता रहता है,
हर तरह की बुराइयों से लैस पुरुष,
खोजता रहता रहा है
अपनी गलतियों को दूसरों पर,
मगर करा लेता है खुद की फजीहत,
पुरुषवादी सोच के बाद भी
सफल होना चाहता
संघर्षरत महिलाओं के चरित्र पर
जब तब लांछन लगा,
पर वो क्यों भूल जाता है कि
वह किसी को चरित्रहीन कहने से पहले
खुद पुरुष होने के लांक्षणिक
वरीयता के बाद भी
हर पल डरता रहता है महिलाओं से,
हर क्षण हर काल सदा
अपनी थेथरई को भूल।
— राजेन्द्र लाहिरी