कुण्डली/छंद

लोकतंत्र

लोकतंत्र का डंका बजता,

करते मीठा शोर।

जनता के वे सेवक बनते,

नाचे जैसे मोर।।

बाँट नोट की होती रहती,

दर्शन की हो होड।

चरणों में नत मतदाता के,

याचक बन कर जोड।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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