जल कैसा पीना चाहिए और कितना?
‘जल ही जीवन है’ यह एक पुरानी कहावत है और आज भी शत प्रतिशत सत्य है। जल के बिना हमारा जीवित रहना लगभग असम्भव है। जल न केवल जीवन के लिए, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी परम आवश्यक है। नित्य साधारण शीतल जल से स्नान करना और दिनभर नियमित अन्तराल पर जल पीना स्वास्थ्य की कुंजी है। इसके अभाव में अनेक शारीरिक समस्याएँ हो जाती हैं। लेकिन जल कैसा पिया जाये और कितना, इस बारे में लोगों में बहुत भ्रम फैला हुआ है। बहुत से लोग गर्म जल को स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताते हैं, तो कई लोग शीतल जल पीने पर जोर देते हैं। जल की मात्रा के बारे में भी मतभेद होते हैं। यहाँ हम अपने अनुभव से इन बातों को स्पष्ट करेंगे।
सबसे पहली बात तो यह है कि भारत एक गर्म देश है। अंग्रेजी कैलेंडर के दिसम्बर और जनवरी माहों को छोड़कर शेष दिनों में यहाँ का मौसम प्रायः गर्म या सामान्य रहता है। इसलिए हमेशा गर्म जल पीना हमारे लिए लाभदायक नहीं हो सकता। इसके विपरीत यूरोप-अमरीका-कनाडा आदि देशों में मौसम प्रायः ठण्डा ही रहता है। वहाँ गर्म जल पीना कुछ सीमा तक स्वीकार्य और लाभदायक हो सकता है, परन्तु वहाँ के मानक हमारे देश पर लागू नहीं होते।
हमें यह जानना चाहिए कि हमारे शरीर में ठंडी वस्तुओं को गर्म करने की तो कुछ सीमा तक व्यवस्था होती है, परन्तु गर्म वस्तुओं को ठंडा करने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए जब हम कोई गर्म वस्तु लेते हैं, तो उसे स्वतः ही धीरे-धीरे ठंडा होना पड़ता है। इस कारण हर समय गर्म जल पीना लाभदायक नहीं हो सकता। निरन्तर गर्म जल पीने से हमारी पाचन शक्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। चाय-कॉफी आदि गर्म पेय पीने से भी ऐसा ही होता है।
इसके विपरीत साधारण शीतल जल हमारी पाचन शक्ति के लिए बहुत लाभदायक होता है। इससे मल निष्कासन भी सरल और स्वाभाविक होता है। इसलिए हमें साधारण शीतल जल ही दिनभर पीना चाहिए। घड़ों और सुराहियों में ठंडा किया हुआ शीतल जल पीना इसीलिए हमारी प्राचीन परम्परा रही है। लेकिन इसका विकल्प फ्रिज में रखी हुई बोतलों का ठंडा जल नहीं हो सकता। वह जल आवश्यकता से अधिक ठंडा होता है और हानिकारक होता है। इसलिए यदि ऐसा जल पीना ही पड़े, तो उसमें कुछ सामान्य जल मिलाकर आवश्यक सीमा तक पीने योग्य बना लेना चाहिए।
यह अवश्य है कि गर्म जल हमारे मलाशय में जमे हुए मल को निकालने में सहायक होता है। बहुत से लोगों को चाय पीये बिना शौच नहीं होता और इसी से बेड टी की गलत परम्परा चल गयी है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में भी गुनगुने गर्म जल का ऐनिमा देकर मलाशय को साफ किया जाता है। इसीलिए मैं प्रातः उठते ही केवल एक बार एक या डेढ़ गिलास गुनगुना जल नीबू और शहद डालकर पीने की सलाह देता हूँ और स्वयं भी इसका पालन करता हूँ। इसके बाद दिनभर केवल साधारण शीतल जल ही पीना चाहिए।
जहाँ तक जल की मात्रा की बात है, गर्मी के दिनों में हमारे शरीर से बहुत पसीना निकलता है। इसलिए गर्मियों में जल की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। मेरे अनुभव के अनुसार जाड़ों में वयस्क लोगों को दिनभर में ढाई से तीन लीटर जल अवश्य पी लेना चाहिए और गमियों में तीन से चार लीटर जल भी पिया जा सकता है। जल की यह मात्रा हमारे शरीर की शुद्धि क्रियाओं को जारी रखने और सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त है।
पीने के लिए जल हमेशा शुद्ध होना चाहिए। पहले कुओं, नदियों, तालाबों और हैंड पम्पों का जल भी अच्छा पीने योग्य माना जाता था, परन्तु आजकल ये स्रोत भी प्रदूषित हो जाने के कारण झरनों आदि का प्राकृतिक जल ही पीने योग्य होता है। वह मिनरल वाटर के नाम से बोतलों में मिलता है। वर्तमान में यही सबके लिए हानिरहित है। घरों में लगे हुए आर.ओ. का पानी भी यद्यपि पीने लायक होता है, परन्तु वह आवश्यकता से अधिक साफ हो जाने के कारण अन्ततः हानिकारक ही सिद्ध होता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो इस प्रकार के जल को पीने से बचना चाहिए।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल
फाल्गुन अमावस्या, सं. 2081 वि. (28 फरवरी 2025)