ग़ज़ल
आ गये हैं तेरी पनाह में देखो।
बसते मेरी ही चाह में देखो।।
पा ही लेंगे तुम्हें हम कैसे भी।
अब खड़े हैं हम राह में धेखो।।
रोना अच्छा नहीं दुखों में सुन।
क्या रखा है इस आह में देखो।।
कर्म कर नेक ही मिले मंज़िल।
तब चढ़ो हर निगाह में देखो।।
हो गये हम सफल कहा जैसा।
दम बहुत है सलाह में देखो।।
आज कर्तव्य हम किये जाते।
कौन मरता है डाह में देखो।।
व्यर्थ जीवन न खोना अपना ही।
हो न परेशां खामख्वाह में देखो।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’