तस्वीर के रंगों की तरह
तस्वीर के रंगों की तरह,यह धरती रंगी अजूबा है।
चित्रकार है एक खुदा ही उस के सिवा न दूजा है।
हिंदी मुस्लिम सिख ईसाई छैल यहा¡ हैं फूल खिले,
अपनें ढंग से मन से होती अज़ान प्रार्थना पूजा है।
हरी भरी यह धरती देखो नीला कैसा है गगन रचा,
श्वेत वस्त्र धारण कर के हिमालय कितना ऊ¡चा है।
भांति भांति के रंगों से रंगे उपवन खिले हैं फूलों से,
चहक रहे हैं तितली भौंरे मिलन कितना अनूठा है।
कानन कितना सुंदर यहा¡ हर रंग के पशु हैं घूम रहे,
अपने अपने सब के रंग हैं कुदरत खजाना लूटा है।
रंग बिरंगे पक्षी धरा पर गाते हैं मधुर सुर गीत यहा¡,
कैसे रंगों से रंगी ईश्वर ने कोई रहा नहीं अछूता है।
भक्ती का रंग या प्रेम रंग हो चाह प्रभु को पाने की,
जपतप ध्यान साधना के रंग में हर साधक डूबा है।
तस्वीर के रंगों की तरह, यह धरती रंगी अजूबा है।
चित्रकार है एक खुदा ही उस के सिवा न दूजा है।
— शिव सन्याल