शब्दों का घर
जीवन के पन्ने
रोशनी से परिपूर्ण हैं,
हर शब्द अपने अर्थ को
समाहित करता है,चमकता है
संशय पूर्ण रास्तों में
मशाल बनकर जलता है
तपता है,सोना बनता है
तप कर जोगी बनता है
भरता है कोरा कोरा भोला सा मन
हर शब्द का अपना घर बनता है
मेरा आश्रय यही शब्द हैं
मैने किराए के नकली संवेदनाओं
के मकान से परे ,सीधा साधा सा
शब्दों का घर चुना है
कविताओं में रहकर
अंधेरे से लड़कर
बस जीवन के पन्नों में
चमकना चुना है!
— सविता