वक्त की रफ्तार
वक्त की रफ्तार है बड़ी तेज
लेकिन वक्त हमारा बदल रहा नहीं!
दिन महीने साल गुजर रहे
लेकिन खुशियां न मेरे हाथ लगी!
अनन्त विषाद मन में भरे हुए
न जाने क्यों हम जी रहे!
मेहनत से भी बदल न पाइ
हाथो की लकीरें अपनी!
किस्मत की देखिए कारीगरी
हर कदम पर मात दे रही!
सुनसान और वीरान रेगिस्तान में
हम तलाश रहे है पानी का चंद बूंदे!
जिंदगी क्या यूं ही गुजर जाएगी भटकते हुए!!
— विभा कुमारी “नीरजा”